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अपने सिद्धांतों पर अटल रहें

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दानिय्येल 1:8,9 परन्तु दानिय्येल ने अपने मन में ठान लिया कि वह राजा का भोजन खाकर, और उसके पीने का दाखमधु पीकर अपवित्र न होए; इसलिये उस ने खोजों के प्रधान से विनती की कि उसे अपवित्र न होना पड़े। 9परमेश्‍वर ने खोजों के प्रधान के मन में दानिय्येल के प्रति कृपा और दया भर दी। 

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अपने सिद्धांतों पर अटल रहें


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अक्सर परमेश्वर के खिलाफ बगावत करना किसी बड़ी बात से शुरू नहीं होता। ऐसा कभी-कभी होता है, लेकिन अधिकतर, यह एक दो छोटे समझौतों से शुरू होता है जो बड़ते बड़ते विद्रोह में बदल जाते हैं।

पुराने नियम के समय में, परमेश्वर के लोगों को कुछ खाद्य पदार्थों से दूर रहने के लिए कहा गया था। लगभग, जब तक कि उन्हें 586 ईसा पूर्व के आसपास बेबीलोनिया द्वारा बंदी बना कर गुलाम बना लिया गया। उनमें से एक, युवक  दानिय्येल, खुद को राजा नबूकदनेस्सर के महल में पाता है।

उस आघात की कल्पना करें, जब बेबीलोनिया ने यरूशलेम को नष्ट कर मंदिर को धराशायी कर दिया था, यह घोषणा करते हुए कि इस्राएलियों का परमेश्वर पराजित हो गया है।

शुरुआत में, दानियल (जो इस समय एक गुलाम है) को इस दुविधा का सामना करना पड़ता है कि उसके सामने रखा खाना खाया जाए या नहीं। क्या मैं परमेश्वर का आदर करूँ, जो पराजित हो गया प्रतीत होता है, या मैं प्रवाह के साथ भ कर इस भोजन को खा लूँ? आइए कहानी को आगे बड़ाते हैं:

दानिय्येल 1:8,9 परन्तु दानिय्येल ने अपने मन में ठान लिया कि वह राजा का भोजन खाकर, और उसके पीने का दाखमधु पीकर अपवित्र न होए; इसलिये उस ने खोजों के प्रधान से विनती की कि उसे अपवित्र न होना पड़े। 9परमेश्‍वर ने खोजों के प्रधान के मन में दानिय्येल के प्रति कृपा और दया भर दी।  

डैनियल अपने सिद्धांतों पर खड़ा होने का फैसला करता है जिसके लिए उसे अपनी जान गंवानी पड़ सकती है। इसके लिए विश्वास और साहस की आवश्यकता थी जिसे परमेश्वर ने अशपेनाज़ के माध्यम से उसे दिया। 

यह वह जगह है जहां हम आज भी खुद को पाते हैं। क्या मैं प्रवाह के साथ जाता हूं, या क्या मैं परमेश्वर  का सम्मान करता हूं और जो मैं जानता हूं उसके लिए खड़ा होता हूं? अक्सर हम दुनिया के तौर-तरीकों को अपना लेते हैं, और उनमे डूब जाते हैं, क्योंकि हम कल्पना करते हैं कि ऐसा ना करने के परिणाम भयानक हो सकते हैं।

परमेश्वर उनका आदर करता है जो उसका आदर करते हैं। अपने विश्वास के लिए खड़े हों।

यह उसका ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए…।